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४ स्कूल में माताजी के काम की ज्ञलक (१)
आश्रम और स्कूल में फ्रेंच
(दो-तीन अध्यापक स्कूल मे शिला के माध्यम के बारे में बातचीत करते हैं? उसका सारांश इस टिप्पणी के साथ माताजी क्वे सामने रखा जाता है :)
अपनी शिला-विषयक पुस्तक मैं श्रीअरविन्द कहते हैं कि बच्चे को अपनी मातृभाषा मै शिला मिलनी चाहिये,
श्रीअरविन्द ने यह कहा तो हैं, लेकिन उन्होंने और भी बहुत-सी चीजें कही हैं जो उनकी सलाह की पूरक हैं और जो सिद्धांतवादी की हर संभावना को रद्द करती हैं । स्वयं श्रीअरविन्द ने बहुत बार दोहराया हैं कि अगर तुम एक चीज को निश्चयपूर्वक स्वीकारते हो, तो तुम्हारे अंदर उससे ठीक विपरीत को भी स्वीकारने की क्षमता होनी चाहिये; अन्यथा तुम 'सत्य' को नहीं समझ पाओगे ।
(उसी में एक अध्यापक पूछता है कि आश्रम में फ्रेंच का क्या भविष्य हैं ?)
आश्रम में हम फ्रेंच सिखाना जारी रखेंगे, बहरहाल तबतक तो जरूर जबतक मै निन्दा हू, क्योंकि श्रीअरविन्द, जिन्हें फ्रेंच बहुत प्रिय थी और जो इसे बहुत अच्छी तरह जानते थे, यह मानते थे कि यह भाषाओं के ज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण अंग है ।
(२३ -८ -१९६५)
(कोंच के बारे मे वार्तालाप के समय एक शिष्य माताजी का ध्यान हक बात की ओर खचित? है कि अब बहुत- ले फ्रेंच लोग विशेष रूप से नवागंतुक अच्छी तरह कैंची जाननेवालों के सादा मी अंग्रेजी मै बात करते हैं माताजी थोडी देर एकाग्र रहती हैं फिर कहती हैं : ''इसमें हानि उन्हीं की हैं '' तब शिष्य पूछता है कि माताजी इस विषय पर कोई संदेश दें तो क्या वह त्कमदायक होगा हैं अपने हाथ से यह संदेश लिखती हैं और सतर्क देती हैं कि इसे सकृत् और आश्रम मे थमाता जाये और इसकी एक प्रति स्कूल के पुस्तकालय मे लगायी जाये अत: फोटो प्रतियां बनायी गयी !)
श्रीअरविन्द को फ्रेंच बहुत प्रिय थीं । उनका कहना था कि वह एक स्पष्ट और एक
सुशिक्षित भाषा हैं जिसका व्यवहार बुद्धि की स्पष्टता को बढ़ाता हैं । चेतना के विकास की दिष्टि से, यह बहुमूल्य है । फ्रेंच मे तुम जो कहना चाहते हो, ठीक वही कह सकते हो ।
- आशीर्वाद ।
(१९-१०-१९७१)
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